हमारे समय का गीत
(गीतकार नीरज की याद में)
कहीं से कोई भद्दा सा लतीफ़ा
मेरी शर्ट की पॉकेट में आ गिरता है
पॉकेट को हड़बड़ा कर ख़ाली करने के क्रम में
वह भद्दे तरह सी लटक जाती है
इससे पहले कि उसे मैं ठीक करूँ
एक बदबूदार वीडियो क्लिप मेरे सर आ टकराता है
उसके टुकड़े मेरे सामने नाचते लगते हैं
कहीं कोई तीन युवक किसी महिला को
उसके बाल खींच कर मार रहे हैं
कुछ युवक एक बूढ़े व्यक्ति को लतिया रहे हैं
हिलते डुलते तस्वीरों में कुछ चीखने की आवाज़ आती है
जो गालियों और कर्कश अट्टास में दबी सी जाती हैं
उन टुकड़ों को मैं अपनी खिड़की से बाहर फ़ेंक देता हूँ
लेकिन वो पेंडुलम का रूप ले लेती हैं
और मेरे कमरे में नाचती हुई
अंदर-बाहर होती रहती हैं
मानो हमारे समय का
अब बस यही गीत हमारे पास रह गया हो
कुमार विक्रम
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