जब मैं महान कवितायें लिखता था
यह तब की बात है
जब मैं महान कवितायें लिखता था
और खुद उन्हें पढ़ कर
अभिभूत सा रहता था
कुछ कुछ धुंधला सा
ख्याल आता है कि
विश्व के हर कोने से
कवि-वर मुझसे कविता
और काव्य शास्त्र सीखने आते थे
अब न वो मैं रहा
न ही मेरी कविताई रही
न ही मेरे शब्दों में कोई तरुणाई रही
रह गयी तो सिर्फ उन शब्दों की ऐंठन
जिनसे मैं अब सबको बांध कर
पुनः अपने लिए
एक महाकाव्य रचना चाहता हूँ
जब मैं महान कवितायें लिखता था
और खुद उन्हें पढ़ कर
अभिभूत सा रहता था
कुछ कुछ धुंधला सा
ख्याल आता है कि
विश्व के हर कोने से
कवि-वर मुझसे कविता
और काव्य शास्त्र सीखने आते थे
अब न वो मैं रहा
न ही मेरी कविताई रही
न ही मेरे शब्दों में कोई तरुणाई रही
रह गयी तो सिर्फ उन शब्दों की ऐंठन
जिनसे मैं अब सबको बांध कर
पुनः अपने लिए
एक महाकाव्य रचना चाहता हूँ
कुमार विक्रम
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