नदियों में मानो सागर का पानी वापिस आ रहा है
हवा के रुख को मापने का उसके पास कोई सामान नहीं था
शायद उसे देखकर ही बदलने का अरमान नहीं था
सूरज का निकलना तय है पूरब से
पश्चिम से उगाने का उसे ईमान नहीं था
छाती पीट पीट कर वो बंद दरवाज़ों में रोता रहा
अब उसके पास आने जाने के लिए कोई मेहमान नहीं था
चिठ्ठियों को फाङ कर उसने फ़ेंक दिए थे
ज़रूर अब देने के लिए कोई पैगाम नहीं था
क्यूँ न टकटकी लगा कर आहटों को मैं गिनू
क्या शोर का दबदबा सरेआम नहीं था?
नदियों में मानो सागर का पानी वापिस आ रहा है
क्या यह कुदरत का खुद सबसे बड़ा इम्तहान नहीं था?
कुमार विक्रम
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